राब्ता टूट गया तेरी हंसी कि खनखनाहट से
तेरी उन नम आखों कि नमकीनियत चखी नहीं जाती
तेरे मिसरी से लब जो घुल जाते थे लबो पे , खुर्द फर्श से सूख गए है
वो जो कान में बाली लटकती थी तेरे
वो थम गई है किसी बेज़ार दरख्त कि तरह
तू क्यों अटकी हुई है सीने में ,
एक साँस बहार छोडू तो निकल क्यों नहीं जाती।
तेरी उन नम आखों कि नमकीनियत चखी नहीं जाती
तेरे मिसरी से लब जो घुल जाते थे लबो पे , खुर्द फर्श से सूख गए है
वो जो कान में बाली लटकती थी तेरे
वो थम गई है किसी बेज़ार दरख्त कि तरह
तू क्यों अटकी हुई है सीने में ,
एक साँस बहार छोडू तो निकल क्यों नहीं जाती।